Blogger Template by Blogcrowds.

गज़ल

जिस ओर देखता हूँ उसकी निशानियाँ है
यह और बात मेरी नजरें धुवाँ धुवाँ है

मैं हाथ थाम लेता गर पासबाँ न होते
उसकी कलाइयोंमें दरवान चूडियाँ हैं

बिजली गिरागिराकर पूछो न दिलजलोंसे
दिल दाग दाग क्यों है, क्यों खा़क बस्तियाँ हैं ?

आए रकीब कितने इस प्यार के सफ़रमें
लूटें मुहाफ़िजोंने इस बार कारवाँ हैं

वह टूटनाभि, यारों, कितना हसीन होगा
दीदार संगदिल का, जब ख़्वाब शीशियाँ है

सायें है ज़िंदगीपर गुजरे हुए दिनोंके
काजलभरा समाँ है, पुरपेच बदलियाँ हैं

लो शाम हो चली है उसकी इनायतोंकी
अब रात उम्रभर है, मैं हूँ, उदासियाँ है...

0 Comments:

Post a Comment



Newer Post Older Post Home